Saturday 31 December 2011

नये वर्ष के नये दिवस पर

नये वर्ष के नये दिवस पर, आप सभी का है अभिनन्दन।
 भ्रष्टाचार मिटायें बिन न, भारत  में  न आये  सुशासन।।
 हम जागे  तो  भारत  जागे, और  संगठित  होना आगे।
 लोकपाल मजबूत हमें दो, और नहीं कुछ ज्यादा माँगे।।
जनता को बेवकूफ बनाकर,थमा रहे हो केवल झुनझुन।
नये वर्ष के नये दिवस पर, आप सभी का है अभिनन्दन।।
जागे हम अब नींद थी गहरी,शायद प्रातः हुई सुनहरी।
इस संसद को हमें बदलना,क्योंकि अब यह गूँगी बहरी।।
समझे कीमत अपने मत की,मतदाताओं का हो जागरण।
नये वर्ष के नये...........................................................
अन्ना जी ने हमें जगाया,स्वप्न सुनहरा एक दिखाया।
जागरूक रहना है हमको,कुचल न जाये यह आन्दोलन।।
नये वर्ष के नये..........................................................
अब तुम कैसे भी बहलो ,जीत  के  दोबारा  दिखला  लो।
जब्त तुम्हारी होय जमानत,जितना चाहे जोर लगालो।।
दारू  मुर्गा  नहीं  चलेगा, खर्च  करो  चाहे  जितना धन।
नये वर्ष के नये..........................................................
कितनी जोड़ी  दौलत  काली, कितनी  तुमने  खाई  दलाली।
कितना तुमने लिया कमीशन,जनता सबक सिखाने वाली।।
इस चुनाव  में  इन्हें  हराकर, वापस  लाना  वह  काला धन।
नये वर्ष के नये..........................................................
जिसने  इनकी  पोलें  खोली, उसको  मरवा  देते  गोली।
यह अनाज खा गये दवाई,पशुओं की भी घास न छोड़ी।।
भ्रष्टाचारी  हैं  जो  नेता, लोकपाल  की  वह  हैं  अड़चन।
नये वर्ष के नये......................................................
रात को जो देता था पहरा, दिन को निकला वही लुटेरा।
इन्हें  न  संसद  जाने  देंगे, नेताओँ  का  करके  घेरा।।
इनकी जगह नहीं संसद में,जेल में भेजे पकड़के गरदन।
नये वर्ष के नये........................................................
अब तो जनता सचमुच जग ली,कुछ सांसद संसद में कतली।
यही गिरायें  संसद  गरिमा, जगह  जेल  में  इनकी  असली।।
गलत  तरीकों  से  जीतें  जो , रद्द  होय  उनका  निर्वाचन।
नये वर्ष के नये...........................................................
जिन्हें बोलने की न सभ्यता,संसद की हो नष्ट भव्यता।
ऐसे लोग यदि  संसद  में, लोकतंत्र  की   हुई विफलता।।
चुनों न ऐसों को  जो  करते, हैं  फूहड़ता  का  प्रतिपादन।
नये वर्ष के नये...........................................................
लूट रहा जो खुल्लम-खल्ला,कहीं न होता उसका हल्ला।
आज सांसद बन बैठा वह, कभी था दादा  एक मुहल्ला।।
ऐसों  को  न  जीतने  देना , जनता  से  मेरा  आवाहन।
नये वर्ष के नये.........................................................
जनता को जो माने नीचा, और स्वयं  को माने  ऊँचा।
अबकी बार वोट से संसद, ऐसों  को  न  देना  पहुँचा।।
तुमने लूटा बहुत देश को,अब खाली कर दो सिंहीसन।
नये वर्ष के नये.....................................................
जो समाज का सच्चा सेवक, उसे  ही  पहुँचाना  है  संसद।
राजनीति है जिनका धन्धा,सिर्फ कमाना दौलत मकसद।।
अच्छे लोगों का स्वागत हो, करें बुरों का हम निष्कासन।
नये वर्ष के नये दिवस.............................................
भारत का कितना धन बाहर, बात न  हो  संसद  के  अन्दर।
वह काला धन नेताओं का,फिर शक क्यों न हो इन सबपर।।
इस चुनाव में इन्हें हराकर, वापस  लाना  वह  काला  धन।
नये वर्ष के नये...........................................................
वादे  बड़े  बड़े  हैं  करते , जीत  के  नेता  सभी  मुकरते।
जनता की परवाह नहीं कुछ,सिर्फ तिजोरी अपनी भरते।।
लिखित में लेंगे सारे वादे,झूठे थे  अब  तक  आश्वासन।
नये वर्ष के नये...........................................................
नेता  होते  अवसर  वादी , गुण्डों  से  है  संसद  आधी।
जनता को हक नहीं मिला है,केवल संसद को आजादी।।
संसद है जनता के हित को,बनी आज नेता सुख-साधन।
नये वर्ष के नये..........................................................
भारत में जो जाति-प्रथा है,मुझको तो यह लगे  वृथा  है।
ऐसा धर्म ग्रन्थ क्यों मानें, झूठी  लगती  मनु  कथा  है।।
आगे आकर बुद्धिजीवियो,करिये जाति-प्रथा का भंजन।
नये वर्ष के नये...........................................................
आओ छोड़ो धर्म के झगड़े,एक बने हम अगड़े पिछड़े।
आओ भूलें बात पुरानी, चलों  सुधारें  रिश्ते  बिगड़े।।
धर्म जाति में हमे न पढ़ना,चाहे जितना करें निवेदन।
नये वर्ष के नये........................................................
जन्म से कोई नहीं बड़ा हो,धर्म का न कोई नियम कड़ा हो।
जात-पात यह हम न मानें,धर्म का यह जो नियम कड़ा हो।।
धर्म छोड़ने की  आजादी, क्यों  न  तोड़े  जाति  का  बंधन।
नये वर्ष के नये............................................................
देख रहा हूँ मैं इक सपना, क्यों  न  एक  धर्म  हो  अपना।
पूजा केवल मानवता की,कई नामों को व्यर्थ है जपना।।
धर्म से न पहचानें जायें, सिर्फ  भारतीयता  की  हो  धुन।
नये वर्ष के नये........................................................
मृत्यु-भोज है बड़ी बुराई,क्यों न अब तक समझ में आई।
आओ मिलकर इसे मिटायें, मैंने  तो  सौंगंध  है  खाई।।
कई बुराईयाँ औ कुरीतियाँ, आओ हम सब करें विवेचन।
नये वर्ष के नये.........................................................
बहू  को  बेटी  क्यों  न  मानें , बेटी  को  बेटे  सा जानें।
गैर नारि पर  दृष्टि  वैसी, जैसा  रूप  देखते  माँ  में।।
नारी को अपने सा समझो, अब  न  हो  नारी  उत्पीड़न।
नये वर्ष के नये दिवस पर,आप सभी का है अभिनन्दन।।

Wednesday 28 December 2011

लोकपाल मजबूत बनाना

हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।
नेताओं पर देश न छोड़े,हमको मिलकर देश बचाना।।
नेता का हित एक सभी हैं,लेकिन जनता एक नहीं हैं।
इनकी जब्त जमानत होगी,अबकी बार सबक सिखलाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
वोट हमें उसको ही देना,जो माने जनता का कहना।
भ्रष्टाचार सहा जो अब तक,अब उसको आगे न सहना।।
अब संसद ये जा न पायें,जेल की चक्की है पिसवाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
यह आन्दोलन को भटकायें,कई झूठे आरोप लगायें।
जाति-धर्म कि बात छेड़कर,लोकपाल को यह लटकायें।।
लोकपाल मजबूत बनाकर,हमको नई व्यवस्था लाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
आरक्षण में यह उलझाकर,जाति-धर्म का टैग लगाकर।
पाँच साल तक फिर लूटेंगे,जनता को बेवकूफ बनाकर।।
भ्रष्टाचार से मुक्त जो होना,तो फिर इनको न जितवाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
जनता इनकी समझे चालें,गीदड़ ओढ़े शेर की खालें।
घर-घर में हमको जा करके,इनका असली रूप दखाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
जनता से न बड़े सांसद,देश लूटना कुछ का मकसद।
और लूटने इन्हें न देंगे,जाग गये हैं क्योंकि हम सब।।
नेताओं का धन बाहर जो,वह काला धन वापस लाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
निर्धन कोई टिकट न पाता,टिकट अमीरों को मिल जाता।
जनता की वह सुध क्यों लेता,देश लूटने में लग जाता।।
अब तो जनता जान गई है,नेता लूंटें देश खजाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको मिलकर देश जगाना।।
आपस में करवा कर झगड़े,हमें बाँटते अगड़े,पिछड़े।
मिल-जुलकर यह लूट रहें हैं,इसीलिये न जाते पकड़े।।
बच न पाये कोई नेता,इनकी पोल खोल दिखलाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
जो विदेश में है धन काला,नेताओँ ने किया हवाला।
नेताओं की करतूतों से,भारत का हो गया दिवाला।।
करना हमें वसूली इनसे,देश को फिर धनवान बनाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
नेताओँ से नहीं डरेंगे,देश की सारी जेल भरेंगे।
आज देश को पढ़ी जरूरत,खुद को हम कुर्बान करेंगे।।
मेरा रँग दे बसंती चोला,अधरों पर हो यही खजाना।
हमें जगया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
नेताओं ने दिया है धौका,मेरा देश भाड़ में झौका।
भ्रष्टाचारी बढ़ती जाती,मँहगाई को नहीं है रोका।।
इनके घर पर धरना देकर,अपना रोष हमें दिखलाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको अपना देश जगाना।।
हमसे इनके बँगले गाड़ी,इनके फैले बिजनिस खाड़ी।
जनता के दबाव के कारण,आज जेल में है कड़माड़ी।।
चाह रहे हैं इनके नेता,इसे जेल से है छुड़वाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको मिलकर देश जगाना।।
आज जेल में है जो कोड़ा,इसका दोष नहीं है थोड़ा।
इसके धन का इसे न मालुम,इसने तो हैं अरबों जोड़ा।।
इसकी कुर्क हो सारी दौलत,इनको कड़ी सजा दिलवाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
जो वोफोर्स का हुआ घोटाला,इक नेता तो खा गया चारा।
मिले-जुले हैं सारे नेता,कोई न इनसे कहने वाला।।
बहुत सहे हमने घोटाले,देश को इनसे हमें बचाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
सांसद बिकें बचें सरकारें,सांसद बिकें गिरें सरकारें।
राज्यसभा में पहुँचा देते,लोकसभा जो सांसद हारें।।
वही सांसद मंत्री बनता,बदलें यह कानून पुराना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
सब्ज बाग ये हमें दिखाते,एक भी वादा नहीं निभाते।
हैं खुदगर्ज बेशरम पक्के,पाँच साल में फिर आ जाते।।
हाथ जोड़कर पैर पकड़ते,भइया सांसद हमें बनाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
उनसे हमें नहीं अब डरना,इनसे एक प्रश्न ही करना।
लोकपाल लाओगे पक्का,वोट नहीं देगे हम वरना।।
लोकपाल का बने अडंगा,उस नेता को हमें हराना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
कुछ नेता इतने बौराये,जनता इनको सबक सिखाये।
RSS का कहें मुखौटा,अन्ना पर आरोप लगाये।।
कहता कोई भगोड़ा सैनिक,जो मन आये है बक जाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
अफवाहें झूँठी फैलाते,यह हमको बेवकूफ बनाते।
जुड़े हुये हैं जो अन्ना से,उनपर झूठे केश लगाते।।
हमको गिरफ्तारी है देना,गाली गोली लाठी खाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
शासन में बैठे आधे ठग,इसमें नहीं किसी को है शक।
क्या गौरों से ही सीखा है,नेताओं ने लूटने का हक।।
ओर देश को लूट न पायें,लोकपाल मजबूत बनाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमके सारा देश जगाना।।
खुद को हम 'आजाद' बनायें,भगत सिंह अशफाक बनायें।
हममें है झाँसी की रानी,क्यों न हम सुभाष बन जायें।।
लाठी गोली या दें गाली,हमको आगे बढ़ते जाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
हम जागे तो जनता जागे,मौलिक अधिकारों को माँगे।
लूटा है कई नेताओँ ने,ऐसा होगा न फिर आगे।।
लोकपाल मजबूत बनाओ,नेताओं को जेल भिजाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
आगे न कोइ देश को लूटे,लूटे जेल जाय न छूटे।
वह संसद से आँयें वापस,जिसके वादे निकलें झूटे।।
ये रिजेक्ट रीकॉल का हमको,एक ठोस कानून बनाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
कैसे-कैसे तरकश छोड़े,RSS का नाम हैं जोड़े।
धर्म-जाति की बात उठाकर,चाहें यह आन्दोलन तोड़ें।।
भेद भूल सब एक हुये हम,इनकी हर हरकत बचकाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
अन्ना इतने सीधे-साधे,सब आरोपों को सह जाते।
आरक्षण की बात उठाकर,मुद्दों से हमको भटकाते।।
खाद्य सुरक्षा का बिल लाकर,जनता को बेवकूफ बनाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
जागो-जागो बहुत सो लिया,पोछों आँसू बहुत रो लिया।
हम क्यों पीछे रह जाँयें अब,भारत अन्ना संग हो लिया।।
सबको अन्ना के संग मिलकर,फिर से नई क्रांति लाना।
हमें जगाया है अन्ना ने,हमको सारा देश जगाना।।
 सोई थी जनता जगाया, बृद्ध इक इंसान ने।
 जूँ नहीं रैंगे तुम्हारे, क्या अभी तक कान में।।
  खिड़कियों से देख लो, नेताओ थोड़ा झांककर।
  आ गई जनता बगावत के लिये मैदान में।।
  तुम अगर चेते न अब,जनता की तुमने न सुनी।
  भीड़ जायेगी बदल यह,एक दिन तूफान में।।
  न सियासत यह रहेगी , न रहेगीं कुर्सियां।
  देश के तुम हो लुटेरे,अब गया हूँ जान मैं।।
  राज्य का सूरज नहीं था,डूबता जिनका कभी।
  गोरों की सत्ता गई थी,तुम हो किस अभिमान में।।
  तुम समझते टीम यह,सिमटी हुई कुछ लोगों तक।
  भीड़ है कितनी अधिक,अन्ना के इक आवाह्न में।।
  तुम समझते हो मजा,सत्ता में है सबसे अधिक।
  हम मानते हैं देशभक्ति , देश पर कुर्बान मैं।।

Friday 23 December 2011

आओ फिर से देश बनायें।

सांसद बड़े बड़ी या जनता।
सांसद को ये कौन है चुनता।।
संसद में यह प्रश्न खड़ा है।
चुने जो सांसद वही बड़ा है।।
सांसद जो कानून बनायें।
जनता से न पूछा जाये?
जनता को जनता से संसद।
जनता हित संसद का मतलब।।
जो जनता के काम न आये।
जनता को बेवकूफ बनाये।।
ऐसी संसद हमें न भाये।
क्यों न और व्यवस्था लायें।।
संसद में गुण्डे हैं कुछ-कुछ।
वह ही नेता हुये निरंकुश।।
इनको अब है सबक सिखाना।
इन्हें न अब संसद पहुँचाना।।
किये हैं जिन-जिन ने घोटाले।
उनके चेहरे करना काले।।
संसद से वापस बुलवाकर।
इन सबको तिहाड़ पहुँचाकर।।
आजादी का जश्न मनायें।
आओ फिर से देश बनायें।।

Tuesday 13 December 2011

बेटी की पीड़ा

ज्ञात कोख में बेटी होगी, एवर्सन से उसे गिराते।
बेटी होती घर में मातम, बेटा होता खुशी मनाते।।
देख न पाई कैसी दुनियाँ, उसे पेट में मसल दिया है।
कहते कभी न चीटी मारी, पर बेटी का कतल किया है।।
सब धर्मों में, सब समाज में, बेटी क्यों अपराध बनी है।
आगे चलकर जीवन देती, बेटी क्यों अभिशाप बनी है।।
जिसने पुत्र किया है पैदा, उसने ही बेटी है जन्मी।
बेटा हो सुख, बेटी हो दुख, यह मानवता की बेशर्मी।।
पिता डाँट माँ की फटकारें, वह समझे कि प्यार यही है।
लाड प्यार केवल भाई को, उसने केवल मार सही है।।
गलती से गलती हो जाये, कहते सब यह पागल मूरख।
वह कहती गलती धोखे से, सब कहते यह करती बकबक।।
जानबूझकर कर देता है, बेटा अगर बड़ी कोइ गलती।
उस पर तो मम्मी पापा की, नजर नहीं जाने क्यों पड़ती।।
बेटी माँगे कोई खिलौना, बातों से उसको बहलाते।
बेटा माँगे कोई खिलौना, एक नहीं दो-दो दिलवाते।।
सुन्दर नये भाई को कपड़े, बहने उसका उतरन पहनें।
बदल गई है कितनी दुनियाँ, मगर उपेक्षित फिर भी बहनें।।
बेटी घर की रौनक होती, बेटी घर की जिम्मेदारी।
बेटी है तो घर में खुश्बू, घर की करती पहरेदारी।।
उसको सबकी चिंता रहती, सबको खुशियाँ देने वाली।
ईश्वर की यह कैसी माया, उसकी किस्मत रोने वाली।।
बीमारी में बेटी सम्मुख, बेटी घऱ की पीड़ा हरती।
बेटे घर संकट लाते, बेटी घर में खुशियाँ भरती।।
भाई को वह बहुत चाहती, बेटी को है सहना आता।
सबका दुख वह हरने वाली, अपना दुख न कहना आता।।
संविधान में हक हैं सारे, पर घर में अधिकार नहीं है।
मात-पिता के क्यों अधिकारी, बेटी से जो प्यार नहीं।।
बचपन को वह जान न पाई, कब है आता कब है जाता।
बचपन का आभास उसे तब, जिस दिन बेटी बनती माता।।

Monday 12 December 2011

दिनेश के दोहे ( आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपचार )

1:-दामिड़(अनार)छिलका सुखाकर, पीसें चूर्ण बनाय।
सुबह शाम जल डाल कम, पी मुँह बदबू जाय।।
2:-चूना घी औ शहद को, ले सम भाग मिलाय।
बिच्छू का विष दूर हो, इसको यदि लगाय।।
3:-गरम नीर को कीजिये, उसमें शहद मिलाय।
तीन बार दिन लीजिये, तो जुकाम मिट जाय।।
4:-अदरक रस, मधु भाग सम, करें अगर उपयोग।
    निश्चित ही मिट जायगा, खाँसी औ कफ रोग।।
5:-गोखूरू के चूर्ण को, शहद के साथ मिलाय।
    सेवन प्रतिदिन यदि करे, पथरी दूर भगाय।।
6:-ताजे तुलसी-पत्र का, पीजे रस दस ग्राम।
     पेट दर्द से पायँगे, कुछ पल में आराम।।
7:-बहुत सरल उपचार है, यदि आग जल जाय।
     मींगी पीस कपास की, फौरन जले लगाय।।
8:-रुई जलाकर भस्म कर, करें वहाँ भुरकाव।
      जल्दी ही आराम हो, होय जहाँ पर घाव।।
9:-नीम-पत्र के चूर्ण में, अजवाइन इक ग्राम।
      गुड़  संग पीजे पेट के, कीड़ों से आराम।।
10:-मिश्री के संग पीजिये, रस ये पत्ते नीम।
    पेचिश के ये रोग में, काम न कोई हकीम।।

( प्राचीन आयुर्वेदिक पुस्तकों के आधार पर )

यदि ईश्वर ने दुनियाँ बनाई होती।

यह दुनियाँ यदि ईश्वर ने बनाई होती,
तो इतनी अधिक नहीं इसमें बुराई होती।
माना लेता तूँ जो करता है भले के लिये करता है,
यदि तूने भोपाल में गैस  नहीं रिसाइ होती।
यह भी मान लेता कि तूने बनाया होगा सबको,
अगर कुछ लोगों ने गोधरा में ट्रेन न जलाई होती।
मैं भी जाता तेरे मंदिर मस्जिद चर्च गुरूद्वारे में,
अगर तेरे बंदों ने मस्जिद नहीं गिराई होती।
तेरे अस्तित्व को स्वीकार क्यों नहीं करता मैं,
यदि तानाशाहों ने तुझसे शक्ति नहीं पाई होती।
( हिटलर, तैमूर, नादिरशाह आदि )
तू नहीं जब तो मेरी बातों का जवाब  कैसे देगा,
नहीं पूछता तुझसे यदि किसी ओर ने मुझे बताई होती।
मान लिया तेरी दुनियाँ  है, सभी बंदे भी तेरे हैं,
मगर एक बात बता, इनका आपस में क्यों लड़ाई होती।

Sunday 11 December 2011

माँ की महिमा

और कहीं पर नजर न आया, माँ को देखा ईश्वर पाया।
माँ ही जाने माँ की महिमा, बड़ी खुदा से है मेरी माँ।
माँ का कर्ज न चुक सकता है, क्योंकि सबकी होती सीमा।।
माँ ने हमको जन्म दिया है, माँ ने हमको जगत दिखाया।
और कहीं पर नजर न आया, माँ को देखा ईश्वर पाया।।
जब हम रोते चुप करवाती, वह लोरी हर रात सुनाती।
पहले सबकी भूख मिटाये, बचा-खुचा वह खाना खाती।।
वह है काफिर और नास्तिक, जिसने माँ का हृदय दुखाया।
और कहीं पर नजर न आया, माँ को देखा ईश्वर पाया।।
हम बच्चा वह बच्चा बनती, बच्चों की वह बकबक सुनती।
सर्दी के पहले मेरी माँ, हम बच्चों के स्वेटर बुनती।।
पहन के देखो बेटा स्वेटर, कैसा लगता कह पहनाया।
औप कहीं पर नजर न आया। माँ को देखा ईश्वर पाया।। 

दिनेश की मधुशाला (प्रेम, विद्या और एकता)

                                  प्रेम
वही सार्थक जीवन समझू, पिये प्रेम की जो हाला।
 ठेस लगी गर हल्की सी ही, पल में टूटे दिल प्याला।।
पिला रहे हैं इक दूजे को, दोनों ही बनकर साकी।
जितनी पीते इच्छा होती, यह जीवन है मधुशाला।।
                               विद्या
व्यर्थ जिन्दगी निश्चित होती, अगर न पी विद्या हाला।
भर-भर कर हम पीते जाते, पुस्तक-कापी का प्याला।।
हमें पिलाते मार, डॉटकर, शिक्षक बनकर के साकी।
पीकर सफल जिन्दगी करते, यह विद्यालय मधुशाला।।
                              एकता
हुये इकठ्ठे छककर पीना, हमें एकता की हाला।
एक दूसरे का आपस में, भरे विचारों का प्याला।।
पियें सभी बन जायें हम ही, एक दूसरे के साकी,
करें व्यवस्था नशा अधिक हो, बने देश यह मधुशाला।।

Saturday 10 December 2011

साकी हाला मधुशाला

1-खूनी बर्बर बन जाता है, पीकर मनुज धर्म हाला।
कभी नहीं खाली होता है, पाखंड़ों का यह प्याला।।
पिला रहे अनपढ़ मूर्खों को, धर्मगुरू बनकर साकी।
मिलती है बिन मोल यहाँ पर मंदिर-मस्जिद मधुशाला।।
2-लहू बहाते बेकसूर का, पीकर मनुज धर्म हाला।
जाने कब कैसे टूटेगा, पाखंड़ों का यह प्याला।।
फैलाते है साम्प्रदायिकता, धर्मगुरू बनकर साकी।
बनती बिकती औ पिवती है, मंदिर-मस्जिद मधुशाला।।
3-मुझे नास्तिक काफिर कह लो, किन्तु न पिऊँ धर्म हाला।
जब तक प्राण शेषर लहू तोड़ू, पाखंडों का यह प्याला।।
मुझे नहीं बहका पाये तुम, धर्मगुरू बनकर साकी।
वह पथ छोड़ा मैंने जिस पथ, मंदिर-मस्जिद मधुशाला।।

Wednesday 16 November 2011

he bhagwan

हे भगवान,
लोग तुम्हारा क्यों करते हैं गुनगान,
लोग कहते हैं तुम हो सर्वज्ञ,सर्वज्ञाता,सर्वशक्तिमान।
किन्तु मैं ऐसा नहीं मानता,
तुम्हें अच्छी तरह जानता।
तुम सर्वशक्तिमान नहीं हो,
इसलिये मेरी नजर में भगवान नहीं हो।
हिटलर तैमूर नादिरशाह,
जब कर रहे थे लोगों को तबाह।
तब तुमने क्यों नहीं उन्हें दण्डित किया,
अपनी शक्ति से उनका सिर खण्डित किया।
जब जालिमों ने मजलूमों को मारा था,
तब मजलूमों ने तुम्हें पुकारा था।
सब माँगते रहे उनसे और तुमसे ञपने प्राणीं की भीख,
तुम बहरे हो या बहुत दूर, जो नहीं सुनाई दी उनकी चीख।
एक बात तो है प्रत्यक्ष,
कि तुम नहीं हो सर्वज्ञ।
जब कोई आत्म हत्या कर रहा होता है,
हे भगवान, तू क्या उस समय सोता है।
तू जरा भी नहीं सोचता,
उन्हें आत्म हत्या करने नहीं रोकता।
नहीं निभा पा रहा था वह, परिवार क प्रति अपने फर्ज,
उस पर हो गया था ढेर सारा कर्ज।
न कोई धन्धा न कोई रोजगार,
वह था जन्मजात बेरोजगार।
कैसे करता व अपने परिवार का भरण पोषण,
तुम्हें तो मालुम होंगे सारे कारण।
क्यों नहीं किया तुमने उसकी समस्या क निराकरण।
भगवान तुम जरा तो सोच सकते थे,
उसे आत्म हत्या करने से रोक सकते थे।
तुम उसका कर्ज चुका सकते थे,
उसे कोई न कोई रोजगार दिला सकते थे।
तुमने अच्छा नहीं किया उसके साथ,
तुम्हारे कारण ही उसके बच्चे हो गये अनाथ।
उसकी बीबी को तूने ही विधवा बनाया है,
क्योंकि आत्म हत्या करने से उसे नहीं बचाया है।
अब तो बताओ भगवान,
क्यों करूँ मैं तुम्हारा सम्मान।
एक महिला का जब होता है बलात्कार,
तब तू क्यों नहीं करता कोई चमत्कार।
जब राक्षस बन जाता है एक व्यक्ति,
उस समय उस नारी को क्यों नहीं देता अपार शक्ति।
तुम दिखाई दिये केवल द्रोपती चीरहरण के समय,
क्योंकि उस समय चाहिये थी तुम्हें केवल जय।
या द्रोपती रिश्तेदार तुम्हारी अपनी थी
तुम्हारे परम प्रिय मित्र अर्जुन की पत्नी थी।
लगता है वह कोई महाकाव्य की कथा हे,
शायद आज के परिवेश में वृथा है।
क्योंकि आज प्रतिदिन लाखो द्रोपतियाँ होती हैं बलात् नग्न,
 और तू अपनी दुनियाँ में गोपियों के साथ है मग्न।

Wednesday 9 November 2011

dharm se bada desh

१;-मुसलमान  गीता पढ़े, हिन्दू पढ़े कुरान
.मुसलमान घर कीर्तन, हिन्दू करे अजान .
मुसलमान दीपावली, हिन्दू ईद मनाय.
देश हमारा विश्व में ताकतवर बन जाय.
२;-न खुदा कीमती, न राम कीमती, मेरी नजर में तो इन्सान कीमती.
न मंदिर कीमती, न मस्जिद कीमती, केवल इन्सान की जान कीमती.
न कावा कीमती, न अयोध्या कीमती, केवल हमारा हिन्दोस्तान कीमती.
न गीता कीमती, न कुरान कीमती, केवल हमारा संविधान कीमती.

Monday 7 November 2011

ishwar ko kisne banaya

मेरी माँ गेाबर के गणेश बनाती थी।
पूजा के बाद उन्हें पानी में बहाती थी।
जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है।
कि इन्सान ईश्वर को बना और मिटा सकता है।